सांसों का संकट...

सांसों का संकट…

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काली धुंध की चादर में लिपटी दिल्ली-एनसीआर की यह हालत बीते एक या दो सप्ताह से नहीं, बल्कि पूरे साल प्रदूषण की गिरफ्त में रहने से है।इस पूरे साल 312 में से केवल नौ दिन उत्तर भारतीयों ने साफ हवा में सांस ली है जिसमें दिल्ली, एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल व उत्तराखंड के शहरी क्षेत्र शामिल हैं। 

सालाना एक्यूआई रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, इस साल जनवरी से लेकर जून माह तक एक भी दिन प्रदूषण कम नहीं हुआ। जुलाई में महज एक दिन ही हवा की गुणवत्ता को बेहतर माना गया था। इस रिपोर्ट को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सिर्फ पराली या शुष्क मौसम ही प्रदूषण का कारण नहीं है। पूरे उत्तर भारत में लंबे समय से हवा जहरीली है लेकिन सरकारों के प्रयास नाकाफी हैं। 

डॉ. सौम्यदीप भौमिक ने कहा, लोगों को लगता है कि दिल्ली या पूरे उत्तर भारत की मौजूदा हालात दिवाली और उसके बाद से खराब हुई है, जबकि वैज्ञानिक तथ्य ऐसा नहीं मानते हैं। अगर एक्यूआई रिपोर्ट को आधार माना जाए तो इस साल ही केवल नौ दिन हवा की गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर मिली है।  उन्होंने कहा कि इन तथ्यों से साफ जाहिर है कि प्रदूषण रोकने में सरकारें पूरी तरह से फेल हो रही हैं और इनकी नीतियां जमीनी स्तर पर सुधार से कोसों दूर हैं। 

अधिकारी ने बताया कि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए सात मंत्रालय को मिलाकर एक समिति बनाई गई जो हवा में कार्बन मोनो ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड जैसे जहरीली गैसों से राहत दिलाने संबंधी नीतियों पर कार्य कर रही है। इसके लिए कुछ समय पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से निर्देश जारी हुए। हालांकि समिति की नीतियां अब तक प्रदूषण से राहत दिलाने में असरदार साबित नहीं हुई हैं। 

घर और बाहर दोनों तरफ प्रदूषण
लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने लांसेट में प्रकाशित आईसीएमआर के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर प्रति एक लाख की आबादी पर 89.9 फीसदी दर्ज की गई। देश के 369 मॉनिटरिंग स्टेशन से प्राप्त आंकड़ों से पता चला कि प्रदूषण को लेकर देश में विकट स्थिति देखने को मिल रही है।  घर और उसके बाहर दोनों ही प्रदूषण लोगों के लिए जानलेवा बन गया है।

  • डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि इससे बचने के लिए सरकार और जनता दोनों को ही आगे आने की जरूरत है। अन्यथा अगले 10 से 15 वर्षों के अंदर देश में प्रदूषण से करोड़ों मौतें हो सकती हैं।

प्रदूषण से सर्वाधिक मौतें यूपी में हुई

  • वायु प्रदूषण के कारण सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में 2.6 लाख हुई हैं, जबकि हरियाणा में 28965, पंजाब में 26594, दिल्ली में 12322, उत्तराखंड में 12 हजार, हिमाचल में 7485, जम्मू-कश्मीर में 10476 मौतें 2017 के दौरान दर्ज की हैं।
  • इसी तरह घर के प्रदूषण की बात करें तो उत्तर प्रदेश 78888, हरियाणा में 6751, जम्मू-कश्मीर में 3496, उत्तराखंड में 3570, पंजाब में 6139, हिमाचल प्रदेश में 2986 और दिल्ली में 52 लोगों की मौत हुई है।  

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काली धुंध की चादर में लिपटी दिल्ली-एनसीआर की यह हालत बीते एक या दो सप्ताह से नहीं, बल्कि पूरे साल प्रदूषण की गिरफ्त में रहने से है।इस पूरे साल 312 में से केवल नौ दिन उत्तर भारतीयों ने साफ हवा में सांस ली है जिसमें दिल्ली, एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल व उत्तराखंड के शहरी क्षेत्र शामिल हैं। 

सालाना एक्यूआई रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, इस साल जनवरी से लेकर जून माह तक एक भी दिन प्रदूषण कम नहीं हुआ। जुलाई में महज एक दिन ही हवा की गुणवत्ता को बेहतर माना गया था। इस रिपोर्ट को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सिर्फ पराली या शुष्क मौसम ही प्रदूषण का कारण नहीं है। पूरे उत्तर भारत में लंबे समय से हवा जहरीली है लेकिन सरकारों के प्रयास नाकाफी हैं। 

डॉ. सौम्यदीप भौमिक ने कहा, लोगों को लगता है कि दिल्ली या पूरे उत्तर भारत की मौजूदा हालात दिवाली और उसके बाद से खराब हुई है, जबकि वैज्ञानिक तथ्य ऐसा नहीं मानते हैं। अगर एक्यूआई रिपोर्ट को आधार माना जाए तो इस साल ही केवल नौ दिन हवा की गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर मिली है।  उन्होंने कहा कि इन तथ्यों से साफ जाहिर है कि प्रदूषण रोकने में सरकारें पूरी तरह से फेल हो रही हैं और इनकी नीतियां जमीनी स्तर पर सुधार से कोसों दूर हैं। 

अधिकारी ने बताया कि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए सात मंत्रालय को मिलाकर एक समिति बनाई गई जो हवा में कार्बन मोनो ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड जैसे जहरीली गैसों से राहत दिलाने संबंधी नीतियों पर कार्य कर रही है। इसके लिए कुछ समय पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से निर्देश जारी हुए। हालांकि समिति की नीतियां अब तक प्रदूषण से राहत दिलाने में असरदार साबित नहीं हुई हैं। 

घर और बाहर दोनों तरफ प्रदूषण

लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने लांसेट में प्रकाशित आईसीएमआर के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर प्रति एक लाख की आबादी पर 89.9 फीसदी दर्ज की गई। देश के 369 मॉनिटरिंग स्टेशन से प्राप्त आंकड़ों से पता चला कि प्रदूषण को लेकर देश में विकट स्थिति देखने को मिल रही है।  घर और उसके बाहर दोनों ही प्रदूषण लोगों के लिए जानलेवा बन गया है।

  • डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि इससे बचने के लिए सरकार और जनता दोनों को ही आगे आने की जरूरत है। अन्यथा अगले 10 से 15 वर्षों के अंदर देश में प्रदूषण से करोड़ों मौतें हो सकती हैं।

प्रदूषण से सर्वाधिक मौतें यूपी में हुई

  • वायु प्रदूषण के कारण सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में 2.6 लाख हुई हैं, जबकि हरियाणा में 28965, पंजाब में 26594, दिल्ली में 12322, उत्तराखंड में 12 हजार, हिमाचल में 7485, जम्मू-कश्मीर में 10476 मौतें 2017 के दौरान दर्ज की हैं।
  • इसी तरह घर के प्रदूषण की बात करें तो उत्तर प्रदेश 78888, हरियाणा में 6751, जम्मू-कश्मीर में 3496, उत्तराखंड में 3570, पंजाब में 6139, हिमाचल प्रदेश में 2986 और दिल्ली में 52 लोगों की मौत हुई है।  

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